जीवन परिचय
श्री लाल शुक्ल का जन्म लखनऊ के निकट स्थित अतरौली नामक गांव में 31 दिसम्बर, सन 1925 ईसवीं में हुआ । आपने लखनऊ तथा इलाहबाद में शिक्षा प्राप्त की । आप मेधावी छात्र रहे ।
रचनाएँ
1. अंगद का पाँव
2. यहाँ से वहाँ
3. अज्ञातवास
4. रागदारवारी आदि ।
भाषा-शैली
भाषा - श्री लाल शुक्ल जी की भाषा आडम्बर रहित , व्यावहारिक खड़ी बोली है । आपने अपनी रचनाओं में उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों को भी स्थान दिया है । यथा स्थान लोकोक्तियों मुहावरों का कुशलता पूर्वक प्रयोग किया है । इसके कारण आपकी भाषा में लाक्षणिकता का पुट दिखाई पड़ता है । चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रभावशीलता आपकी भाषा की विशेषता है ।
शैली - आपकी रचनाओं में शैलियों की विविधता के दर्शन होते हैं। आपने अपनी रचनाओं में विषयानुरूप शैलियों का प्रयोग किया है। आप के द्वारा प्रयोग की गई शैलियों का विवरण निम्नानुसार है -
1. व्यंग परक शैली - इस शैली का प्रयोग व्यंगात्मक रचनाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । पहली चूक इसी श्रेणी का निबंध है
2.भावात्मक शैली - शुक्ल जी ने भावात्मक संदर्भों में इस शैली को अपनाया है ।
3. वर्णनात्मक शैली - वर्णात्मक प्रसंगों में शुक्ल जी ने इस शैली का प्रयोग किया है ।
4. संवाद शैली - आप की रचनाओं में संवाद शैली का प्रयोग अनूठा है । आपके संवाद सटीक एवं चुस्त हैं । इसके अतिरिक्त विवेचनात्मक , चित्रात्मक , सांकेतिक आदि शैलियों का प्रयोग शुक्ल जी की रचनाओं में मिलता है ।
साहित्य में स्थान
आधुनिक काल के प्रसिद्ध व्यंगकार एवं कथाकार , निर्भीक रचनाकार के रूप में हिंदी के वर्तमान लेखकों में शुक्ल जी का स्थान मूर्धन्य है ।