Monday, September 12, 2016

श्री लाल शुक्ल

जीवन परिचय 

श्री लाल शुक्ल का जन्म लखनऊ के निकट स्थित अतरौली नामक गांव में 31 दिसम्बर, सन 1925 ईसवीं में हुआ । आपने लखनऊ तथा इलाहबाद में शिक्षा प्राप्त की । आप मेधावी छात्र रहे । 

रचनाएँ

1. अंगद का पाँव 
2. यहाँ से वहाँ 
3. अज्ञातवास
4. रागदारवारी आदि । 

भाषा-शैली 

भाषा - श्री लाल शुक्ल जी की भाषा आडम्बर रहित , व्यावहारिक खड़ी बोली है । आपने अपनी रचनाओं में उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों को भी स्थान दिया है । यथा स्थान लोकोक्तियों मुहावरों का कुशलता पूर्वक प्रयोग किया है । इसके कारण आपकी भाषा में लाक्षणिकता का पुट दिखाई पड़ता है । चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रभावशीलता आपकी भाषा की विशेषता है ।
शैली - आपकी रचनाओं में शैलियों की विविधता के दर्शन होते हैं। आपने अपनी रचनाओं में विषयानुरूप शैलियों का प्रयोग किया है। आप के द्वारा प्रयोग की गई शैलियों का विवरण निम्नानुसार है - 
1. व्यंग परक शैली - इस शैली का प्रयोग व्यंगात्मक रचनाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । पहली चूक इसी श्रेणी का निबंध है 
2.भावात्मक शैली - शुक्ल जी ने भावात्मक संदर्भों में इस शैली को अपनाया है ।
3. वर्णनात्मक शैली - वर्णात्मक प्रसंगों में शुक्ल जी ने इस शैली का प्रयोग किया है ।
4. संवाद शैली - आप की रचनाओं में संवाद शैली का प्रयोग अनूठा है । आपके संवाद सटीक एवं चुस्त हैं । इसके अतिरिक्त विवेचनात्मक , चित्रात्मक , सांकेतिक आदि शैलियों का प्रयोग शुक्ल जी की रचनाओं में मिलता है । 

साहित्य में स्थान 

आधुनिक काल के प्रसिद्ध व्यंगकार एवं कथाकार , निर्भीक रचनाकार के रूप में हिंदी के वर्तमान लेखकों में शुक्ल जी का स्थान मूर्धन्य है । 

श्री लाल शुक्ल

जीवन परिचय 

श्री लाल शुक्ल का जन्म लखनऊ के निकट स्थित अतरौली नामक गांव में 31 दिसम्बर, सन 1925 ईसवीं में हुआ । आपने लखनऊ तथा इलाहबाद में शिक्षा प्राप्त की । आप मेधावी छात्र रहे । 

रचनाएँ

1. अंगद का पाँव 
2. यहाँ से वहाँ 
3. अज्ञातवास
4. रागदारवारी आदि । 

भाषा-शैली 

भाषा - श्री लाल शुक्ल जी की भाषा आडम्बर रहित , व्यावहारिक खड़ी बोली है । आपने अपनी रचनाओं में उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों को भी स्थान दिया है । यथा स्थान लोकोक्तियों मुहावरों का कुशलता पूर्वक प्रयोग किया है । इसके कारण आपकी भाषा में लाक्षणिकता का पुट दिखाई पड़ता है । चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रभावशीलता आपकी भाषा की विशेषता है ।
शैली - आपकी रचनाओं में शैलियों की विविधता के दर्शन होते हैं। आपने अपनी रचनाओं में विषयानुरूप शैलियों का प्रयोग किया है। आप के द्वारा प्रयोग की गई शैलियों का विवरण निम्नानुसार है - 
1. व्यंग परक शैली - इस शैली का प्रयोग व्यंगात्मक रचनाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । पहली चूक इसी श्रेणी का निबंध है 
2.भावात्मक शैली - शुक्ल जी ने भावात्मक संदर्भों में इस शैली को अपनाया है ।
3. वर्णनात्मक शैली - वर्णात्मक प्रसंगों में शुक्ल जी ने इस शैली का प्रयोग किया है ।
4. संवाद शैली - आप की रचनाओं में संवाद शैली का प्रयोग अनूठा है । आपके संवाद सटीक एवं चुस्त हैं । इसके अतिरिक्त विवेचनात्मक , चित्रात्मक , सांकेतिक आदि शैलियों का प्रयोग शुक्ल जी की रचनाओं में मिलता है । 

साहित्य में स्थान 

आधुनिक काल के प्रसिद्ध व्यंगकार एवं कथाकार , निर्भीक रचनाकार के रूप में हिंदी के वर्तमान लेखकों में शुक्ल जी का स्थान मूर्धन्य है । 

Sunday, September 11, 2016

डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल

जीवन परिचय 

डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल जी का जन्म लखनऊ के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1904 ई. में हुआ था । 

रचनाएं - 

निबंध संग्रह - कल्पवृक्ष, उर ज्योति एवं पृथ्वी पुत्र आदि
समीक्षात्मक ग्रन्थ - मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत और कालिदास रचित मेघदूत की संजीवनी व्याख्या । 
सांस्कृतिक साहित्य- पाणिनकालीन भारत वर्ष एवं हर्ष चरित  आदि ।

भाषा-शैली- 

भाषा- आपकी भाषा शुध्द, परिमार्जित , संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है । इसलिए कही-कही वह कठिन भी हो गई है। सामान्यत: विषयानुरूप सरलता ,सुबोधता और सहज प्रवाह आपकी भाषाकी विशेषता है । आपकी रचनाओं में देशज शब्दों का भी प्रयोग दृष्टिगोचर होता है । विषय की गंभीरता के कारण भाषा  भी गंभीर हो गई है । 
शैली- डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की शैली में उनके व्यक्तित्व की झलक दिखाई पड़ती है । आपकी शैली के प्रमुख रूप निम्नांकित हैं- 
1. विचारात्मक शैली - आपके निबंधों में विचारात्मक शैली की प्रधानता है।
2. गवेषणात्मक शैली- आप अन्वेषक थे, पुरातत्व के व्याख्याता थे। आप ने अनेक प्राचीन ग्रंथों, घटनाओं, पात्रों आदि से सम्बंधित निबंधों में गवेषणात्मक शैली का प्रयोग किया।
3. भावात्मक शैली- आपने भाव प्रधान निबंधों में इस शैली का प्रयोग किया है। आपकी भावात्मक शैली का रूप काव्यात्मक है।
4. उध्दरण शैली- आपने अपने निबंधों में अपनी बात को पुष्ट करने के लिए संस्कृत के उध्दरणों का बड़ी कुशलता के साथ उध्दृत किया है।
5. सूत्रात्मक शैली- आपने अपने निबंधों में जीवन के सत्य को उद्घाटित करने हेतु सूत्रात्मक शैली को अपनाया है। इसके अतिरिक्त आपने व्यास एवं सामासिक शैली का भी अपनी रचनाओं में उपयोग किया है।

साहित्य में स्थान-

इतिहास, संस्कृत एवं पुरातत्व के मर्मज्ञ; प्रसिद्ध निबंधकार ,समीक्षक, अनुवादक , प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन्नायक डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल जी का हिंदी साहित्य में मूर्धन्य स्थान है।

Saturday, September 10, 2016

रामवृक्ष बेनीपुरी

जीवन परिचय

हिन्दी साहित्य के महान लेखक,देशभक्त,सम्पादक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में सन् 1902 ई. को एक किसान परिवार में हुआ था।

रचनाएँ-

निबंध- गेंहूँ बनाम गुलाब, मशाल, वन्दे वाणी विनायकौ
संस्मरण- जंजीरें और दीवारें
कहानी- चिता के फूल
उपन्यास- पतितों के देश में

भाषा-शैली

भाषा -  

बेनीपुरी जी की भाषा सरल,शुध्द, साहित्यिक खड़ी बोली है। आपने तत्सम, देसज,और विदेशी सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है । आपकी भाषा में ओजगुण विद्यमान है। शब्दों के लाक्षणिक एवं व्यंजनात्मक प्रयोग ने भाषा को गभीरता प्रदान की है। आपकी भाषा में लोकोक्ति एवं मुहावरों के प्रयोग से  सजीवता आ गई है।

शैली-

आपकी  रचनाओं में निम्नांकित शैलियाँ दिखाई पड़ती हैं -
1  वर्णात्मक शैली - बेनीपुरी जी ने इस शैली में रेखाचित्र , संस्मरण, यात्रा वृतांत  एवं जीवनी आदि की रचना की है। 
2 आलोचनात्मक शैली - आपने समीक्षा के समय आलोचनात्मक शैली का प्रयोग किया है। 
3 चित्रोपम शैली -  इस शैली का प्रयोग रेखाचित्र में दिखाई पड़ता है । यत्र - तत्र कहानी तथा निबंध में भी इस शैली के दर्शन किए जा सकते है। 
4  भावात्मक शैली - बेनीपुरी जी ने इस शैली का प्रयोग अपने ललित निबंधों में सर्वाधिक  किया है। 
5  प्रतीकात्मक शैली - बेनीपुरी जी अपने विचारों को प्रतीकात्मक शैली में प्रस्तुत करने में सिध्दस्त हैं । नींव की ईंट , गेहूँ और गुलाब , निबन्ध इसी शैली में लिखे गए हैं । 

साहित्य में स्थान -

स्वतंत्रता सेनानी, महान निबंधकार, प्रसिध्द रेखाचित्रकार, आलोचक, श्रेष्ठ नाट्यशिल्पी रामवृक्ष बेनीपुरी का हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ स्थान है।