Wednesday, December 20, 2017

मलिक मुहम्मद जायसी

मलिक मुहम्मद जायसी 

रचनाएँ 

1. पद्मावत ( महाकाव्य) 
2. अखरावट 
3. आख़िरी कलम 

 भाव -पक्ष - 

1. निर्गुण ब्रह्म की उपासना हेतु प्रेम की साधना पर विश्वास   - 'जायसी' भक्तिकाल के निर्गुण भक्तिधारा के प्रेममार्गी शाखा के कवि हैं।  आपने प्रेम के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म की उपासना का चित्रण 'पद्मावत' में किया है।  
2. गुरु का महत्त्व - 'जायसी' ने गुरु की महिमा को स्वीकार करते हैं।  ऐसा माना  जाता है कि इनके दो गुरु थे। आपने  गुरु को ब्रह्म का स्थान प्रदान किया है।  
3. श्रंगार से परिपूर्ण भक्ति भाव का चित्रण -'जायसी' ने रानी पद्मावती और राजा रत्नसेन के माध्यम से  श्रंगार से परिपूर्ण भक्ति भाव का चित्रण किया है।  
4.प्रकृति का   सजीव एवं उद्दीपन के रूप में चित्रण  - आपके काव्य में प्रकृति का सजीव एवं उद्दीपन के रूप में चित्रांकन ऋतु वर्णन के रूप में हुआ है | 

कला -पक्ष 

1. भाषा - 'जायसी' जी की भाषा ठेठ अवधी हैं|  आपकी भाषा में किसान -जीवन की छाप दिखाई पड़ती है | इसके अतिरिक्त  फारसी के शब्दों का भी प्रयोग देखा जा सकता है  | भाषा मुहावरेदार एवं सांकेतिक शब्दावली युक्त है | 
2. छंद एवं अलंकार - आपने मुख्यतः दोहा और चौपाई  छंद का  प्रयोग किया है । उपमा, ,रूपक  अनुप्रास, विरोधाभास  आदि अलंकारों की छटा आपकी रचनाओं में स्वाभाविक रूप से दृष्टव्य है  | 

3. फारसी की मसनवी  शैली का प्रयोग - आपकी रचनाओं में फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग हुआ है |किन्तु वह पूर्णतः भारतीय आत्मा के अनुरूप है।  

साहित्य में स्थान - 

'जायसी' भक्तिकाल के निर्गुण भक्तिधारा के प्रेममार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि  हैं। 'पद्मावत' जैसे  महाकाव्य के लिए हिंदी साहित्य जगत सदा ऋणी रहेगा।  ,

 

महादेवी वर्मा


महादेवी वर्मा 

रचनाएँ 

1.यामा ( काव्य, ज्ञानपीठ से पुरस्कृत रचना )
2. नीहार ( काव्य)
3. अतीत के चलचित्र ( संस्मरण)

 भाव -पक्ष - 

महादेवी वर्मा वेदना की कवियत्री हैं।  इनके काव्य का प्रमुख स्वर करुणा और वेदना है।  इनका काव्य संगीतमय है।  अत्यन्त मधुर है। इनकी  रचनाओं में रहस्यवाद की झलक दिखाई पड़ती है।  कवियता भाव प्रधान है।  पढ़ने से पाठक का अंतर्मन अविभूत हो उठता है। आपकी कविताएँ पाठक को जीवनपथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। आपके काव्य में करुण और शांत रस की प्रधानता है।   

कला -पक्ष 

'महादेवी वर्मा' जी ने प्रारंभ में ब्रज भाषा में कविताएँ लिखी हैं।  बाद में खड़ी बोली में काव्य रचना की है।  आपकी भाषा सरस,सुकोमल और परिमार्जित है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा सुंदर और प्रभावशाली बन गई है।       
आपकी छंद योजना विषयवस्तु के अनुकूल है।  आपकी रचनाओं में अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।  अनुप्रास, उपमा, रूपक और विरोधाभास प्रमुख अलंकार हैं।  आपकी रचनाओं में सामासिक पदों की छटा भी दृष्टव्य है। 

साहित्य में स्थान - 

'महादेवी वर्मा' छायावाद की प्रतिनिधि कवियत्री हैं।  आपके काव्य में रहस्यवाद  का भी समावेश हुआ है।  महादेवी वर्मा कवियत्री के साथ-साथ कुशल लेखिका भी हैं।  हिन्दी साहित्य जगत में वेदना की प्रतिमूर्ति और 'आधुनिक काल की  मीरा'  के रूप में आपका स्थान अग्रगण्य है।       


Tuesday, December 19, 2017

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 

रचनाएँ :-

1. चिंतामणि भाग 1 एवं 2  ( निबंध संग्रह ) 
2. हिंदी साहित्य का इतिहास  ( इतिहास ) 
3. हिन्दी काव्य में रहस्यवाद ( समालोचना ) 

भाषा-शैली -

भाषा -आचार्य शुक्ल जी की भाषा तत्सम शब्दों से युक्त शुद्ध ,परिमार्जित खड़ी बोली है ।  आपकी भाषा आडम्बर रहित  विषय के अनुरूप है, इसलिए कहीं- कहीं वह क्लिष्ट हो गई है । सामान्यतया आपकी भाषा सरस.सजीव एवं स्वाभाविक है । मुहावरों और खड़ी बोली के प्रयोग से भाषा रोचक बन गई है । आपकी भाषा पूर्णतः व्याकरण सम्मत है । भाषा प्रवाह पूर्ण एवं सूक्तियों से ओत-प्रोत  है । जैसे - " बैर क्रोध का आचार और मुरब्बा है । " 

शैली -शुक्ल जी शैलियों के सर्जक माने  जाते हैं । शुक्ल जी ने प्रमुख रूप से समास शैली , व्यास शैली , वर्णनात्मक शैली, सूत्रात्मक शैली , समीक्षात्मक शैली और गवेषणात्मक शैली को अपनाया है।  इसके अतिरिक्त हास्य-विनोद और व्यंग्य प्रधान शैली का भी प्रयोग किया है।  

साहित्य में स्थान -   आधुनिक निबन्ध साहित्य में शुक्ल जी युग प्रवर्तक साहित्यकार हैं।  वे मौलिक चिंतक,गंभीर-विचारकऔर समालोचक के रूप में चिर-स्मरणीय रहेंगे।  



बिहारी

बिहारी 

संक्षिप्त परिचय-
बिहारी रीतिकाल के रीति सिद्ध भाव धारा के कवि हैं। इनका जन्म सन 1595 ईसवी में ग्वालियर में हुआ था। इनके पिता का नाम केशव राय था। इनका निधन सन 1663 ईस्वी में हो गया। 
रचनाएँ 
1. बिहारी सतसई  

 भाव -पक्ष - 

1. श्रृंगार रस प्रधान काव्य  - रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी का  काव्य श्रृंगार रस प्रधान है  । आपकी रचना में नायक और नायिका के रूप-चेष्टा, शील सौंदर्य आदि का अद्भुत चित्रण है | 
2. भक्ति भावना - बिहारी जी का काव्य भक्ति विषयक श्रृंगार की भावना से  भी ओत- प्रोत है । 
3. नीति परक रचना - आपकी रचना नीति परक  है ।  
4.प्रकृति का सजीव चित्रांकन  - आपके काव्य में प्रकृति का सजीव चित्रांकन ऋतु वर्णन के रूप में हुआ है | 
इसके अतिरिक्त आपकी रचना में सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और ज्योतिष का भी पुट है |  

कला -पक्ष 

1. भाषा - बिहारी जी की भाषा साहित्यिक ब्रज भाषा हैं|  आपकी भाषा प्रौढ़ और प्राञ्जल है | आपकी भाषा में पूर्वी प्रयोग के साथ बुन्देली का भी प्रभाव परिलक्षित होता है | भाषा मुहावरेदार एवं सांकेतिक शब्दावली युक्त है | 
2. छंद एवं अलंकार - आपने मुख्यतः दोहा छंद का  प्रयोग किया है । उपमा, उत्प्रेक्षा,यमक अनुप्रास आदि अलंकारों की छटा आपकी रचनाओं में स्वाभाविक रूप से दृष्टव्य है  | 

3. सामासिक शैली का प्रयोग - आपकी रचनाओं में समास शैली का प्रयोग हुआ है | आपकी रचनाओं के सम्बन्ध में यह दोहा प्रचलित है -  सतसइया के दोहरे ज्यों नावक के तीर | 

                         देखन में छोटे लगें , घाव करैं गंभीर | 

साहित्य में स्थान - 

बिहारी  रीतिकालीन रीतिसिध्दि भावधारा के प्रसिध्द कवि हैं | गागर में सागर भरने  की कला में प्रवीण बिहारी उस पीयूष-वर्षी मेघ के समान हैं, जिसके प्रकट होते सूर्य ,चंद्र और तारों का प्रकाश छिप जाता

तुलसीदास

तुलसीदास 

 रचनाएँ 

1. रामचरित  मानस  ( महाकाव्य ) 
2. विनय पत्रिका 
3. कवितावली 

 भाव -पक्ष - 

1. भक्ति भावना - तुलसीदास राम भक्ति शाखा के प्रतिनिध कवि हैं। उनका सम्पूर्ण  काव्य राम की भक्ति भावना से ओत-प्रोत है । 
2.  समन्वयवादी दृष्टिकोण - आपके आराध्य राम थे किन्तु आपने सभी देवी देवताओं की स्तुति कर शैव  वैष्णवों के मतभेद को दूर किया है । 
3. लोकमंगलकारी एवं लोकरंजक काव्य  सृजन - आपकी रचना 'सर्व जन हिताय और सर्व जन सुखाय ' से युक्त  है । 
4. रससिध्दता - आपकी रस सिद्ध कवि  है । आपके  काव्य में श्रृंगार, शांत और वीर रस की त्रिवेणी का अद्भुत संगम है ।  इसके अतिरिक्त आपकी रचनाओं में करुण, रौद्र, अद्भुत आदि सभी रसों  का रसस्वादन किया जा सकता है । 

कला -पक्ष 

1. भाषा - आप संस्कृत के  प्रकाण्ड विद्वान थे । आपने अपनी रचनाओं में मुख्यतः अवधी  और ब्रज भाषा  का प्रयोग किया है । रामचरित मानस अवधी में तथा तथा कवितावली , गीतावली,  विनय पत्रिका  आदि की  रचना ब्रज भाषा में की  है। आपकी भाषा सरल,सरस, एवं रोचक है । कहीं -कहीं आपकी रचनाओं में भोजपुरी, बुंदेलखंडी तथा अरबी और फ़ारसी के शब्द भी मिलते हैं  । 
2. छंद एवं अलंकार - आपने मुख्यतः दोहा, चौपाई, सवैया छंदों का प्रयोग किया है ।  दोहा , चौपाई , कवित्त छंद में रामचरित मानस की रचना की ।  गीतावली , विनयपत्रिका  पद शैली में और कवितावली की रचना सवैया में किया । दोहावली की रचना दोहा छंद में की ।  
आपकी रचनाओं  में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि  अलंकारों की छटा दृष्टव्य है । 

साहित्य में स्थान - 

 युगदृष्टा गोस्वामी तुलसीदास जी भक्तिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं । भारतीय संस्कृति और सामाजिक मूल्य के कुशल चितेरे, लोकमंगल एवं  लोकरंजक काव्य   के सर्जक , रामचरित मानस जैसे महान ग्रन्थ के प्रणेता,   करुणा के कवि , तुलसीदास जी का साहित्य जगत में अनुपम स्थान है । 

हरिकृष्ण 'प्रेमी'

हरिकृष्ण 'प्रेमी' 

रचनाएँ - 

1.  बन्धन  (नाटक )
2. बादलों के पार  (एकांकी )
3. रक्षाबंधन  ( नाटक ) 

भाषा-शैली- 

भाषा- हरिकृष्ण 'प्रेमी' सफल नाटककार हैं। आपकी भाषा शुध्द साहित्यिक खड़ी बोली है। आपने अवसर, पात्र, विषय आदि के अनुरूप भाषा का सटीक प्रयोग किया है । आवश्यकतानुसार  आपने अपनी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ, तदभव,देशज एवं उर्दू  आदि शब्दों का सुन्दर समावेश किया है। संप्रेषणशीलता आपकी  भाषा की प्रमुख विशेषता है । 

शैली- हरिकृष्ण 'प्रेमी जी ने विविध शैलियों का प्रयोग किया है । इन्होने मुख्यतः गीत नाट्यशैली का सफल प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त संवाद शैली, भावात्मक शैली का भी अपने नाटकों में प्रयोग किया है। 'प्रेमी' जी के नाटकों में स्वच्छंदतावादी शैली का  सयमित एवं अनुशासित प्रयोग हुआ है।  

साहित्य में स्थान-

 'प्रेमी' जी ने राष्ट्रीय मूल्यों की प्रतिष्ठा, त्याग, तपस्या, सेवा, बलिदान एवं सामाजिक चेतना  के लिए ऐतिहासिक और सामाजिक  नाटकों का प्रणयन किया। मानवीय प्रेम और देशभक्ति की रसानुभूति करने वाले हिन्दी के नाटककारों में हरिकृष्ण 'प्रेमी जी का विशिष्ट स्थान है ।  

सेठ गोविंददास

सेठ गोविंददास  

रचनाएं - 

1.  कर्तव्य   (नाटक )
2. पंचभूत  (एकांकी संग्रह)
3. गरीबी और अमीरी ( नाटक ) 

भाषा-शैली- 

भाषा- सेठ गोविंददास मुख्यतः नाटककार हैं। आपकी भाषा शुध्द साहित्यिक खड़ी बोलीहै।  भाषा भाव,विषय एवं पात्रानुकूल है । आपकी रचनाओं में  तत्सम शब्दों के साथ-साथ, तदभव,देशज एवं उर्दू  आदि शब्दों का सुन्दर समावेश हुआ है। चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रवाहशीलता आपकी भाषा की प्रमुख विशेषता है ।

शैली- सेठ गोविन्ददास जी की शैली शिल्प और भाव प्रधान है । इन्होने मुख्यतः नाट्यशैली का प्रयोग किया है। आपकी नाटकों में चरित्र-चित्रण और संवाद की गतिशीलता के दर्शन सहज ही किए जा सकते हैं।   

साहित्य में स्थान-

सेठ गोविन्ददास गाँधीवादी थे। विचारों की उच्चता, आचरण की पवित्रता और जीवन की सादगी आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता है । प्रसिद्ध नाटक और एकांकीकार राष्ट्रीयचेतना के सर्जक के रूप में आपका स्थान महत्वपूर्ण है।