Monday, November 7, 2016

सूरदास

सूरदास 

जन्म- सन्‌ 1478 ई. ( संवत्‌ 1535 )   
जन्म स्थान- दिल्ली के पास स्थित सीरी ग्राम में , कुछ विद्वान मथुरा के पास स्थित रेनुका (रेणुका) क्षेत्र को उनका जन्म स्थान मानते हैं । 
कर्मस्थली - मथुरा 
स्वर्गवास - सन्‌ 1583 ई. 

रचनाएँ-

1. सूरसागर  ( भगवान कृष्ण की लीलाओं से संबंधित 10000 पद संकलित हैं )
2. सूरसारावली  ( सूरसागर का सार  रूप लगभग 1107 पद संकलित हैं)
3. साहित्य लहरी ( इसमें रस और अलंकार से परिपूर्ण 118  पद हैं )

भाव पक्ष- 

सूरदास प्रेम और सौन्दर्य के अमर  गायक हैं । उनका भावपक्ष अत्यंत सबल है ।  जिसका विवरण  निम्नानुसार है-
1. भक्ति भाव   - सूरदास कृष्ण के  अनन्य भक्त थे । उनकी रचनाओं में भक्ति  भाव की अविरल गंगा बहती है । उनकी भक्ति धारा सख्यभाव की है, किन्तु इसमें विनय, दाम्पत्य और माधुर्य भाव का भी संयोग है ।  
2. वात्सल्य रस का अद्वितीय प्रयोग    - सूरदास वात्सल्य के सर्वोत्कृष्ट कवि हैं । इनकी रचनाओं में श्रीकृष्ण के बालचरित, शारीरिक श्री ,एवं नन्द और यशोदा के  पुत्र- प्रेम ( वात्सल्य) का अद्भुत सौंदर्य विद्यमान है । 
3.  श्रृंगार रस का चित्रण -  सूरदास ने श्रृंगार रस  का कोना -कोना झांक आए  हैं । उनकी रचनाओं में संयोग  एवं वियोग दोनों रूपों का मार्मिक चित्रण देखा जा सकता है । 

कलापक्ष - 

1. ब्रज भाषा का लालित्यपूर्ण प्रयोग - सूरदास के पदों  की भाषा ब्रज भाषा है । उनके पदों में ब्रज  भाषा का लालित्यपूर्ण , परिष्कृत एवं निखरा  हुआ रूप देखने को मिलता है । माधुर्य की प्रधानता के कारण इनकी भाषा अत्यंत प्रभावोत्पादक हो गई है । 
2.संगीतमय गेय पद शैली - सूरदास का संपूर्ण काव्य संगीत की राग - रागनियों में बँधा पद  शैली का गीत काव्य है ।  व्यंग्य , वचनवक्रता और वाग्वैदग्धता सूर की रचना की विशेषता है । 
3. अलंकारों का सहज प्रयोग - सूर की रचनाओं में अलंकार का  सहज रूप देखने को मिलता है । इनकी रचनाओं में    मुख्यतः उपमा , उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार की छटा देखी  जा सकती है  । आचार्य हजारी  प्रसाद द्विवेदी ने कहा था - अलंकारशास्त्र तो सूर के द्वारा अपना विषय वर्णन शुरू करते ही उनके पीछे दौड़ पडता है , उपमानों  की बाढ़ आ जाती है ,रूपकों की बर्षा होने लगती है । 

साहित्य में स्थान -

सूरदास भक्तिकाल के अष्टछाप कवियों में श्रेष्ठ कवि हैं ।  वे वात्सल्य और श्रृंगार रस के सिध्द आचार्य हैं। भाव तथा कलापक्ष की जो गरिमा  सूरदास  में है , वह अन्यत्र दुर्लभ है। सूर हिंदी साहित्याकाश के सूर (सूर्य)  हैं । उनके लिए यह कथन सर्वथा उपयुक्त है - 
                                              सूर , सूर तुलसी शशि उडगन केशव दास। 
                                              अब के कवि खद्योत सम, जहैं  - तँह करत प्रकाश ॥ 

 


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