Saturday, November 5, 2016

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद 

रचनाएँ -

1. कामायनी  ( महाकाव्य )
2. करुणालय ( गीत नाट्य )
3. कंकाल  ( उपन्यास ) 

भाव पक्ष - 

प्रसाद जी का भाव क्षेत्र व्यापक है । उनके भाव पक्ष को निम्न बिंदुओं में प्रस्तुत किया जा सकता है -
1. प्रेम एवं सौंदर्य का चित्रण - प्रसाद जी मुख्यतः प्रेम और सौन्दर्य के उपासक हैं । प्रसाद जी द्वारा व्यक्त सौंदर्य में बाह्य और आंतरिक सौंदर्य का अद्भुत सामंजस्य है । कामायनी का यह उदाहरण देखिए - 
घिर रहे थे घुँघराले बल अंस अवलंबित मुख के पास , 
नील घनशावक -से सुकुमार सुधा भरने को विधु के पास । 

2. नारी के प्रति सम्मान का भाव  - प्रसाद जी की रचनाओं में नारी के प्रति श्रध्दा एवं सम्मान के भाव  है ।

3. अनुभूति की गहनता प्रसाद जी के काव्य में अनुभूति की गहनता विद्यमान है । आंसू का यह प्रसंग दृष्टव्य है। 
               "रो -रो कर सिसक-सिसक कर ,
               कहता मैं करुण कहानी ,
               तुम सुमन नोचते सुनते,
               करते जाते अनजानी । "
इसके अतिरिक्त आपकी रचनाओं में कल्पना का अतिरेक , रहस्यवाद , दार्शनिक चिंतन तथा वेदना की अभिव्यक्ति  के स्वर समाहित हैं ।  

कला पक्ष- 

1. भाषा - प्रसाद जी के काव्य की भाषा संस्कृतनिष्ठ, व्याकरण सम्मत , परिष्कृत एवं परिमार्जित खड़ी बोली है । आपने प्रथम काव्य संग्रह 'चित्राधार' की रचना ब्रज भाषा में की है । इसके बाद समस्त काव्य रचना शुध्द ,साहित्यिक खड़ी बोली में किया है । 
2. अलंकार -  प्रसाद जी की रचनाओं में अलंकारों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है । आप सहज एवं स्वाभाविक अलंकार योजना के पक्षधर हैं । आपके काव्य में उपमा , रूपक, मानवीकरण , विशेषण विपर्यय आदि अलंकारों का आकर्षक प्रयोग हुआ है । 
3. छंद योजना - प्रसाद जी ने काव्य रचना का प्रारंभ सवैया एवं कवित्त छंदों से किया किन्तु बाद में आपने गीत- शैली एवं अतुकांत छंद में काव्य रचना की । आपने नवीन छंदों का निर्माण भी किया । 

साहित्य में स्थान 

 भाव पक्ष एवं कला पक्ष की दृष्टि से प्रसादजी का काव्य उच्चकोटि का है ।  आपके काव्य में इतिहास , दर्शन एवं कला का मणिकांचन संयोग देखा जा सकता है ।  छायावाद के जनक जयशंकर प्रसादजी  का  हिंदी साहित्य के आधुनिक रचनाकारों में विशिष्ट स्थान है । 

 


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