सियाराम शरण गुप्त
रचनाएँ -
1. दूर्वादल ( काव्य)
2. पुण्यपर्व ( नाटक )
3. अंतिम आकाँक्षा ( उपन्यास )
भाषा- शैली-
भाषा -
आपकी भाषा सरल, सुस्पष्ट और परिष्कृत है । आपने खड़ी बोली के सहजतम रूप का प्रयोग किया है । भाषा में क्लिष्टता , या बौध्दिकता का भार कहीं दिखाई नहीं पड़ता। आपकी रचनाओं में उक्तियाँ एवं मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग होने से भाषा में सजीवता एवं रोचकता आ गई है । विषय, पात्र एवं अवसर अनुरूप भाषा का प्रयोग आपकी भाषा की महत्वपूर्ण विशेषता है ।
शैली -
आपकी शैली सरल , परिमार्जित एवं स्वाभाविक है । आपकी शैली के प्रमुख रूप निम्नांकित हैं -
1. भावात्मक शैली - गुप्त जी अपनी रचनाओं में हृदय की की अनुभूतियों का प्रभावी अंकन एवं पाठकों में अपनी अमिट छाप छोड़ने के लिए इस शैली का प्रयोग बाखूबी किया है ।
2. विचारात्मक शैली - आपकी कहानियों में इस शैली का प्रयोग देखा जा सकता है ।
3. वर्णनात्मक शैली - 'बैल की बिक्री ' कहानी में मोहन और शिबू आदि के सन्दर्भ में इस शैली का उपयोग किया गया है ।
इसके अतिरिक्त आपने प्रसंगानुसार व्यंगात्मक, सूत्रात्मक शैलियों का भी उपयोग किया है ।
साहित्य में स्थान -
हिन्दी के विनम्र सेवक और संत साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित सियाराम शरण गुप्त जी का हिंदी साहित्य जगत में महत्वपूर्ण स्थान है।
Thanks uncle Ji. Some Karen baht so bagging kids pasha Sarah ho Rahi hai.
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