बिहारी
संक्षिप्त परिचय-
बिहारी रीतिकाल के रीति सिद्ध भाव धारा के कवि हैं। इनका जन्म सन 1595 ईसवी में ग्वालियर में हुआ था। इनके पिता का नाम केशव राय था। इनका निधन सन 1663 ईस्वी में हो गया।
रचनाएँ
1. बिहारी सतसई
भाव -पक्ष -
1. श्रृंगार रस प्रधान काव्य - रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी का काव्य श्रृंगार रस प्रधान है । आपकी रचना में नायक और नायिका के रूप-चेष्टा, शील सौंदर्य आदि का अद्भुत चित्रण है |
2. भक्ति भावना - बिहारी जी का काव्य भक्ति विषयक श्रृंगार की भावना से भी ओत- प्रोत है ।
3. नीति परक रचना - आपकी रचना नीति परक है ।
4.प्रकृति का सजीव चित्रांकन - आपके काव्य में प्रकृति का सजीव चित्रांकन ऋतु वर्णन के रूप में हुआ है |
इसके अतिरिक्त आपकी रचना में सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और ज्योतिष का भी पुट है |
कला -पक्ष
1. भाषा - बिहारी जी की भाषा साहित्यिक ब्रज भाषा हैं| आपकी भाषा प्रौढ़ और प्राञ्जल है | आपकी भाषा में पूर्वी प्रयोग के साथ बुन्देली का भी प्रभाव परिलक्षित होता है | भाषा मुहावरेदार एवं सांकेतिक शब्दावली युक्त है |
2. छंद एवं अलंकार - आपने मुख्यतः दोहा छंद का प्रयोग किया है । उपमा, उत्प्रेक्षा,यमक अनुप्रास आदि अलंकारों की छटा आपकी रचनाओं में स्वाभाविक रूप से दृष्टव्य है |
3. सामासिक शैली का प्रयोग - आपकी रचनाओं में समास शैली का प्रयोग हुआ है | आपकी रचनाओं के सम्बन्ध में यह दोहा प्रचलित है - सतसइया के दोहरे ज्यों नावक के तीर |
देखन में छोटे लगें , घाव करैं गंभीर |
साहित्य में स्थान -
बिहारी रीतिकालीन रीतिसिध्दि भावधारा के प्रसिध्द कवि हैं | गागर में सागर भरने की कला में प्रवीण बिहारी उस पीयूष-वर्षी मेघ के समान हैं, जिसके प्रकट होते सूर्य ,चंद्र और तारों का प्रकाश छिप जाता
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