रामधारी सिंह 'दिनकर "
रचनाएँ-
1. उर्वशी ( महाकाव्य )
2. प्रणभंग ( खंडकाव्य )
3. रश्मिरथी ( खंडकाव्य )
4. कुरुक्षेत्र ( खंडकाव्य )
5. रेणुका ( काव्य-संग्रह )
भाव-पक्ष
1. शोषण के विरुध्द प्रखर स्वर - दिनकर जी की कविता में पूंजीपतियों और शासकों द्वारा किए जा रहे शोषण के विरुध्द स्वर प्रखर होकर मुखरित हुआ है। इनकी रचनाओं में किसानों एवं मजदूरों के प्रति सहानुभूति की झलक भी दिखाई पड़ती है ।
2. राष्ट्रीयता एवं देश प्रेम से ओत-प्रोत रचना - दिनकर जी की कविताएँ राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है. ।
जैस- स्वातंत्र्य जाति की लगन है , व्यक्ति की धुन है , बाहरी वस्तु यह नहीं, भीतरी गुण है ।
3. ओज एवं उत्साह प्रधान कविता - इनकी कविता में उत्साह एवं ओज की प्रधानता है । उदाहरण-
वैराग्य छोड़कर बांहों की विभा सँभालो ,
चट्टानों की छाती से दूध निकालो ।
कला पक्ष
भाषा -
दिनकर जी की भाषा तत्सम प्रधान शुध्द ,साहित्यिक खड़ी बोली है। भाषा भावानुकूल एवं प्रभावशाली है । इनकी भाषा व्याकरण सम्मत एवं अलंकारपूर्ण है ।
शैली -
दिनकर जी ने प्रवन्ध एवं मुक्तक दोनों प्रकार की काव्य शैलियों का प्रयोग किया है । उनकी शैली ओज प्रधान है ।
अलंकार -
दिनकर जी की कविताओं में अलंकारों का स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुआ है । मख्य रूप से उपमा, रूपक उत्प्रेक्षा और अनुप्रास अलंकारों की छटा उनके काव्य में विद्यमान है।
छंद -
दिनकर जी की ने तुकांत एवं अतुकांत दोनों प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है ।
साहित्य में स्थान -
दिनकर जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं । वे अपने युग के प्रतिनिधि कवि हैं । उनकी कविता में महर्षि दयानन्द -सी निडरता भगत सिह जैसा बलिदान, गांधी -सी निष्ठा और कबीर - सी सुधार भावना एवं स्वच्छन्दता विद्यमान है ।