मलिक मुहम्मद जायसी
रचनाएँ
1. पद्मावत ( महाकाव्य)
2. अखरावट
3. आख़िरी कलम भाव -पक्ष -
1. निर्गुण ब्रह्म की उपासना हेतु प्रेम की साधना पर विश्वास - 'जायसी' भक्तिकाल के निर्गुण भक्तिधारा के प्रेममार्गी शाखा के कवि हैं। आपने प्रेम के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म की उपासना का चित्रण 'पद्मावत' में किया है।
2. गुरु का महत्त्व - 'जायसी' ने गुरु की महिमा को स्वीकार करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके दो गुरु थे। आपने गुरु को ब्रह्म का स्थान प्रदान किया है।
3. श्रंगार से परिपूर्ण भक्ति भाव का चित्रण -'जायसी' ने रानी पद्मावती और राजा रत्नसेन के माध्यम से श्रंगार से परिपूर्ण भक्ति भाव का चित्रण किया है।
4.प्रकृति का सजीव एवं उद्दीपन के रूप में चित्रण - आपके काव्य में प्रकृति का सजीव एवं उद्दीपन के रूप में चित्रांकन ऋतु वर्णन के रूप में हुआ है |
कला -पक्ष
1. भाषा - 'जायसी' जी की भाषा ठेठ अवधी हैं| आपकी भाषा में किसान -जीवन की छाप दिखाई पड़ती है | इसके अतिरिक्त फारसी के शब्दों का भी प्रयोग देखा जा सकता है | भाषा मुहावरेदार एवं सांकेतिक शब्दावली युक्त है |
2. छंद एवं अलंकार - आपने मुख्यतः दोहा और चौपाई छंद का प्रयोग किया है । उपमा, ,रूपक अनुप्रास, विरोधाभास आदि अलंकारों की छटा आपकी रचनाओं में स्वाभाविक रूप से दृष्टव्य है |
3. फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग - आपकी रचनाओं में फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग हुआ है |किन्तु वह पूर्णतः भारतीय आत्मा के अनुरूप है।
साहित्य में स्थान -
'जायसी' भक्तिकाल के निर्गुण भक्तिधारा के प्रेममार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। 'पद्मावत' जैसे महाकाव्य के लिए हिंदी साहित्य जगत सदा ऋणी रहेगा। ,